Summary
According to media reports, in a government note sent by the Ministry of Justice, the Election Commissioners were asked to attend the PMO meeting. Election commissioners are expected to stay away from the government to maintain their independence and neutrality.
Former Election Commissioners questioned on Election Commissioners’ interaction with PMO:[
– फोटो : PTI
एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से 16 नवंबर को बुलाए गए वर्चुअल अनौपचारिक बातचीत में मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा और दो चुनाव आयुक्त राजीव कुमार और अनूप चंद्र पांडे शामिल हुए। चुनाव आयुक्तों के पीएमओ के साथ इस तरह की अनौपचारिक बातचीत को लेकर विवाद शुरू हो गया है। जहां एक तरफ पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों ने इसे गैर सांविधानक बताया है, वहीं कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने इस मुद्दे पर लोकसभा में स्थगन प्रस्ताव का नोटिस दिया है। मनीष तिवारी के मुताबिक चुनाव आयुक्तों का बैठक में शामिल होना बताता है कि संस्थानों की स्वायत्तता से समझौता किया गया है।
अंग्रेजी अखबार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले महीने 16 नवंबर को हुई बैठक से कुछ दिनों पहले चुनाव आयोग को कानून मंत्रालय के एक अधिकारी से एक असामान्य पत्र मिला। जिसमें कहा गया कि प्रधान मंत्री के प्रधान सचिव पीके मिश्रा ‘आम मतदाता सूची’ को लेकर एक बैठक की अध्यक्षता करेंगें और इसमें मुख्य चुनाव आयुक्त और दोनों चुनाव आयुक्त की उपस्थित की ‘अपेक्षा’ की जाती है। रिपोर्ट के मुताबिक पत्र में इस तरह के शब्दों से चुनाव आयोग में हड़कंप मच गया क्योंकि इसे एक समन की तरह देखा गया जिससे संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन होता है।
रिपोर्ट में आगे कहा गया कि मुख्य चुनाव आयुक्त ने पत्र मिलने के बाद कानून मंत्रालय को अपनी “नाराजगी” जाहिर की और यह बता दिया कि वह बैठक में शामिल नहीं होंगे। चंद्रा की तरह दोनों आयुक्त भी इस आधिकारिक वर्चुअल मीटिंग से दूर रहे और उनके अधीनस्थ अधिकारियों ने इसमें हिस्सा लिया। लेकिन इस बैठक के खत्म होने के बाद तीनों आयुक्त तुरंत मिश्रा के साथ अनौपचारिक बातचीत में शामिल हुए। सूत्रों ने कहा कि पीएमओ के साथ अनौपचारिक बातचीत के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को विभिन्न चुनावी सुधारों को मंजूरी दे दी, जिसे चुनाव आयोग संसद के चल रहे शीतकालीन सत्र में लाने पर जोर दे रहा था।
पीएमओ इस तरह की बैठक नहीं बुला सकता
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त डॉ एस वाई कुरैशी ने इस पूरे मामले पर गंभीर टिप्पणी की है। उन्होंने अमर उजाला डिजिटल से बातचीत में कहा ‘पीएमओ इस तरह किसी बैठक में चुनाव आयुक्तों को नहीं बुला सकता। औपचारिक बातचीत क्या होती है? सीईसी का पहला रिएक्शन अच्छा था, लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि वे अनौपचारिक बातचीत में शामिल हुए। चुनाव आयुक्तों की सरकार के साथ औपचारिक या अनौपचारिक कोई बातचीत नहीं हो सकती’।
यह गलत परंपरा
डॉ एस वाई कुरैशी के मुताबिक चुनाव आयोग ने सरकार से पहले कभी इस तरह की बातचीत नहीं की। यह एक गलत परंपरा है। हां, आयोग चुनाव से पहले सभी राजनीतिक दलों की बैठकें जरूर बुलाता है और चुनाव की तारीखों और तैयारी को लेकर उनकी राय ली जाती है। इसमें सभी दलों की बात सुनी जाती है। कभी-कभी किसी खास मुद्दे पर अपनी बात लेकर राजनीतिक दल चुनाव आयोग भी आते रहे हैं।
चुनाव आयोग एक स्वतंत्र सांविधानक संस्था
कुरैशी सवाल करते हैं, क्या पीएमो या पीएम खुद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को ऐसे बुला सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग बराबर है। चुनाव आयोग एक स्वंत्र सांविधानिक संस्था है और पीएमओ इस तरह चुनाव आयोग को बैठक में शामिल होने के लिए नहीं कह सकता है।
सांविधानक दायित्व पर सवाल
एक अन्य पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने नाम नहीं लिखे जाने की शर्त पर कहा ‘पीछे से चुपके से इस बातचीत का क्या मतलब है? चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है और सांविधानिक पद पर बैठे तीन आयुक्त यह सुनिश्चित करते हैं कि वे सरकार से दूरी बनाए रखें। लेकिन इस मामले में यह साफ दिखाई दे रहा है कि वे सरकार के साथ बातचीत में शामिल हो रहे हैं। पीएमओ के साथ बातचीत चाहे अनौपचारिक हो या औपचारिक आयुक्तों को अपने सांविधानिक उत्तरदायित्व को समझते हुए इस समय और सावधानी से (पांच राज्यों में चुनावों की घोषणा जल्द होनी है) व्यवहार करने की जरूरत थी। इससे निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव कराने के आयोग के सांविधानिक दायित्व पर सवाल उठ सकता है’।
विस्तार
एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से 16 नवंबर को बुलाए गए वर्चुअल अनौपचारिक बातचीत में मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा और दो चुनाव आयुक्त राजीव कुमार और अनूप चंद्र पांडे शामिल हुए। चुनाव आयुक्तों के पीएमओ के साथ इस तरह की अनौपचारिक बातचीत को लेकर विवाद शुरू हो गया है। जहां एक तरफ पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों ने इसे गैर सांविधानक बताया है, वहीं कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने इस मुद्दे पर लोकसभा में स्थगन प्रस्ताव का नोटिस दिया है। मनीष तिवारी के मुताबिक चुनाव आयुक्तों का बैठक में शामिल होना बताता है कि संस्थानों की स्वायत्तता से समझौता किया गया है।
अंग्रेजी अखबार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले महीने 16 नवंबर को हुई बैठक से कुछ दिनों पहले चुनाव आयोग को कानून मंत्रालय के एक अधिकारी से एक असामान्य पत्र मिला। जिसमें कहा गया कि प्रधान मंत्री के प्रधान सचिव पीके मिश्रा ‘आम मतदाता सूची’ को लेकर एक बैठक की अध्यक्षता करेंगें और इसमें मुख्य चुनाव आयुक्त और दोनों चुनाव आयुक्त की उपस्थित की ‘अपेक्षा’ की जाती है। रिपोर्ट के मुताबिक पत्र में इस तरह के शब्दों से चुनाव आयोग में हड़कंप मच गया क्योंकि इसे एक समन की तरह देखा गया जिससे संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन होता है।
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